केरला
जजों की नौकरी किसी परिवार की संपत्ति नहीं , केरल हाईकोर्ट के जज की सख्त टिप्पणी
25 मई , केरल

केरल हाई कोर्ट
केरल देश की अदालतों में जजों की नियुक्ति प्रकिया को लेकर बहस अब भी जारी है। केरल हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बी कमाल पाशा ने भी जजों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने पूरे न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह पद किसी परिवार की संपत्ति नहीं है, जिसे जाति या लगाव के आधार पर बांटा जाए।
उनकी यह टिप्पणी केरल हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के खाली पद को भरने के लिए कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए नामों के बाद आई है। खास बात यह है कि इन नामों की सिफारिश को रद्द करन के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की गई थी, जिसे खारिज किया जा चुका है।
बता दे कि याचिकाकर्ता वकील सीजे जोवसन और साबू ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से कॉलेजियम द्वारा दिए गए नामों को खारिज करने की मांग की थी। उन्होंने यह दरख्वास्त की थी कि न्यायाधीशों के खाली पदों को भरने के लिए वकीलों की नई सूची बनाई जाए। इस सूची में ऐसे किसी वकील का नाम शामिल न किया जाए, जिसका किसी मौजूदा या पूर्व जज से संबंध हो।
याचिका में तर्क दिया कि अनुशंसित उम्मीदवार पूर्व न्यायाधीशों या वकील जनरल के परिचित और रिश्तेदार हैं। इसके साथ ही आरोप लगाया गया है कि एक तो हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश का दामाद है, दूसरा हाईकोर्ट के जज का चचेरा भाई है, तीसरा एक शीर्ष न्यायिक अधिकारी का दामाद है और चौथा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज का रिश्तेदार है।
न्यायमूर्ति पाशा ने बार और बेंच के सदस्यों द्वारा विदाई बैठक में दिए गए अपने भाषण में कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति किसी परिवार की संपत्ति नहीं है। मुझे इस पर विश्वास नहीं है कि नियुक्ति प्रक्रिया को धर्म, जाति, उप जाति या लगाव के आधार पर नहीं बांटा जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति पाशा ने कहा कि उन्होंने बार से कुछ नामों पर विचार करने की सिफारिश की है। उन्होंने कहा, ‘अगर मीडिया द्वारा दिए गए नाम सही हैं, तो मैं बहुत अच्छी तरह से कह सकता हूं कि मेरे साथ इस अदालत के अधिकांश न्यायाधीशों के पास इन लोगों के चेहरों को देखने के लिए कोई अच्छा भाग्य नहीं है। क्या न्यायपालिका के लिए यह अच्छा है? ‘
चौथा खंभा न्यूज़ .com / नसीब सैनी/अभिषेक मेहरा
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सबरीमला मंदिर केस में अगले हफ्ते सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट
—पिछले 14 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बड़ी बेंच को रेफर कर दिया था


नई दिल्ली,(नसीब सैनी)।
सुप्रीम कोर्ट केरल के सबरीमला मंदिर में महिलाओं के सुरक्षित प्रवेश की मांग को लेकर दायर याचिका पर अगले हफ्ते सुनवाई करेगा। याचिका मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के लिए आंदोलन करने वाली बिंदु अम्मिनी ने दायर की है।

आज अम्मिनी की ओर से वकील कोलिन गोंजाल्वेस ने इस मामले पर जल्द सुनवाई करने के लिए चीफ जस्टिस एस ए बोब्डे की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष मेंशन किया। तब कोर्ट ने इस याचिका पर अगले हफ्ते सुनवाई करने का आदेश दिया। याचिका में कहा गया है कि सबरीमला मामले पर दाखिल रिव्यू पिटीशंस पर सुप्रीम कोर्ट के 14 नवम्बर के फैसले के बाद केरल सरकार 10 से 50 साल तक की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दे रही है। अम्मिनी ने कहा है कि जब वह पिछले 26 नवम्बर को कोच्चि सिटी पुलिस कमिश्नर के यहां मंदिर में प्रवेश के लिए सुरक्षा की मांग करने गई थी तो उस पर किसी ने तीखा स्प्रे फेंक दिया था। अम्मिनी ने 26 नवम्बर को तृप्ति देसाई और सरस्वती महाराज के साथ मंदिर में जाने की योजना बनाई थी।

याचिका में कहा गया है कि पुलिस सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों की अनदेखी कर रही है। 14 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने मामला बड़ी बेंच को भेजने का आदेश दिया था जबकि केरल सरकार ने यह कहते हुए महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने पर रोक लगा दिया कि सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेश पर रोक है। राज्य सरकार के इस रुख से असामाजिक तत्वों को महिलाओं को रोकने का मौका मिल रहा है। पुलिस सुरक्षा नहीं होने की वजह से किसी भी महिला को मंदिर में प्रवेश करना मुश्किल कार्य है।

पिछले 14 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बड़ी बेंच को रेफर कर दिया था। 3-2 के बहुमत वाले फैसले में कहा गया है कि 7 सदस्यीय संविधान बेंच सिर्फ सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से जुड़े मामले की सुनवाई नहीं करेगी बल्कि वो मस्जिदों और दरगाहों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश और पारसी महिलाओं के खतना जैसी प्रथा पर भी सुनवाई करेगी।
नसीब सैनी
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सूचना आयोगों में खाली पड़े पदों पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करें केंद्र और 9 राज्य : सुप्रीम कोर्ट
—पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल और कर्नाटक सरकार को निर्देश


नई दिल्ली,(नसीब सैनी)।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों में खाली पड़े पदों पर नियुक्ति के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग करनेवाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और 9 राज्य सरकारों को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।

याचिका आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने दायर किया है। याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेश के बावजूद केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों में खाली पड़े पदों को नहीं भरा गया है। अंजलि भारद्वाज की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों ने नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों का चयन भी नहीं किया है।
दरअसल, दिसम्बर 2018 में केंद्र सरकार ने कहा था कि केंद्रीय सूचना आयोग में खाली पद जल्द ही भर लिए जाएंगे। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि उसे केंद्रीय सूचना आयुक्त के लिए 65 और सूचना आयुक्तों के लिए 280 आवेदन मिले हैं। योग्य नामों का चयन कर लिया गया है।

केंद्र सरकार ने कहा कि इस बारे में जल्द ही अंतिम निर्णय ले लिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वो आवेदकों के नाम, सेलेक्शन का पैमाना और सर्च कमेटी का ब्यौरा कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग की वेबसाइट पर डालें।
पहले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल और कर्नाटक सरकार को निर्देश दिया था कि वे केंद्रीय और राज्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए उठाए गए कदम पर प्रगति रिपोर्ट दाखिल करें।

सूचना का अधिकार कानून के तहत सूचना आयोग पाने संबंधी मामलों के लिए सबसे बड़ा और आखिरी संस्थान है। हालांकि सूचना आयोग के फैसले को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। सबसे पहले आवेदक सरकारी विभाग के लोक सूचना अधिकारी के पास आवेदन करता है। अगर 30 दिनों में वहां से जवाब नही मिलता है तो आवेदक प्रथम अपीलीय अधिकारी के पास अपना आवेदन भेजता है।
नसीब सैनी
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केरल में समुद्र किनारे बने 400 फ्लैट्स गिराने के सुप्रीम आदेश
—पूर्व आदेश का पालन नहीं होने पर कोर्ट नाराज. मुख्य सचिव को किया तलब


नई दिल्ली,(नसीब सैनी)।
सुप्रीम कोर्ट ने केरल के एर्नाकुलम में समुद्र तट के किनारे बने करीब 400 फ्लैट्स को 20 सितंबर तक गिराने का आदेश दिया है। इसको लेकर पिछले मई माह में दिए गए आदेश पर अमल नहीं होने पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है। नाराज कोर्ट ने राज्य के चीफ सेकेट्ररी को 23 सितम्बर को कोर्ट में पेश होने के लिए समन जारी किया।

केरल सरकार के रवैये से नाराज जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि केरल कानून से ऊपर नहीं है। कोर्ट ने केरल सरकार के वकील से कहा कि अपने राज्य से कहिए कि कानून का पालन करे। सुप्रीम कोर्ट ने एक्सपर्ट कमेटी की राय जानने के बाद मई में कोस्टल रेग्युलेशन जोन के नियमों की अनदेखी कर बनाई गई इन बिल्डिंग्स को गिराने का आदेश दिया था।

कोर्ट ने कहा कि केरल के जजों को बताइये कि वो भी इस देश का हिस्सा है। हमारे फैसले को पटलने का हाईकोर्ट के जज को कोई अधिकार नहीं है। ये न्यायिक अनुशासनहीनता की इंतिहा है। जस्टिस अरुण मिश्रा ने ये सख्त टिप्पणी मलंकारा चर्च से जुड़े मामले मे केरल हाईकोर्ट के जज के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विपरीत आदेश पास करने के लिए की।
नसीब सैनी
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