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सड़कों से विलुप्त होती जा रही हैं ‘मैला आंचल’ के हिरामन की टप्परगाड़ी

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अररिया, 19 जुलाई।                                                                                                                          देश में सड़कों का जाल क्या बिछ रहा है, ‘मैला आंचल’ के हीरामन की टप्परगाड़ी (बैलगाड़ी) विलुप्त होने की कगार पर है। मखमल की झालर लगी टप्परों के कद्रदान अब नहीं रहे, तो हीरामन भी कमाने के लिए परदेश की राह पकड़ चुका है।
टप्पर गाड़ी परवान चढ़ी हीरामन और हीराबाई की प्रेम कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु ने अपनी प्रसिद्ध कहानी ‘तीसरी कसम’ उर्फ ‘मारे गए गुलफाम’ में टप्परगाड़ी को आंचलिकता के बिंब के रूप में प्रयोग किया है। चंपानगर के मेले से नर्तकी हीरा बाई को लेकर फारबिसगंज के मेले में ला रहे हीरामन के बीच अघोषित प्रेम की बुनियाद टप्पर गाड़ी में पड़ती है। मेले तक आते-आते यह कहानी एक कालजयी रचना का स्वरूप ग्रहण कर अमर हो जाती है। इस कथा पर बनी फिल्म में प्रसिद्ध शोमैन राज कपूर तथा मायनाज अदाकारा वहीदा रहमान ने जिस तरह अपने किरदारों को जीवंत किया है, वह आधी सदी के बाद भी बरबस यह कहने को विवश कर देती है कि हीरामन, बहुत याद आती है तेरी टप्पर गाड़ी..।
गांवों में बिछा सड़कों का जाल, टप्परगाड़ी चालक हुए बेहाल
ग्रामीण इलाकों में सड़कों का जाल बिछ रहा है। फलत: यातायात का स्वरूप भी बदल गया है। टप्पर गाड़ी चलाने वाले बेकार हो गए और नए युवाओं ने टैम्पो व ट्रैक्टर आदि चलाना शुरू कर दिया है। अब गांवों में टप्पर गाड़ी या बैलगाड़ी गाहे-बगाहे ही नजर आते हैं। गाड़ियों का स्वरूप भी बदल गया है। पहले की तरह लोहे की हाल वाले पहियों के स्थान पर अब सेकेंड हैंड टायर-ट्यूब का प्रयोग किया जा रहा है। मगर सबसे बड़ा बदलाव यह नजर आता है कि सदियों से बैलगाड़ी चलाकर अपनी आजीविका अर्जित करने वाले युवा अब रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली-पंजाब की ओर जाने लगे हैं। अमर कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु के बड़े पुत्र व पूर्व विधायक पद्म पराग राय रेणु ने बताया कि बाबूजी को सिमराहा स्टेशन से लाने ले जाने वाला दिलीप मंडल भी कमाने के लिए बाहर चला गया है।
टप्पर बनाने की कला से जुड़े हजारों हाथ भी बेकार हो गए हैं। सीमांचल के कारीगर बांस की खूबसूरत कमाचियों को रंग देकर जिस तरह से टप्परों में तब्दील कर देते थे, वह अब अतीत की बात हो गई है। दरअसल, फिल्म तीसरी कसम में हीरामन व हीरा बाई के किरदार ने यहां की टप्पर व टप्परगाड़ी को एक खूबसूरत नास्टेलजिया में तब्दील कर दिया है और ‘मैला आंचल’ में अपनी जिंदगी गुजारने वाला हर शख्स इस नास्टेलजिया में डूबना खूब पसंद करता है। बरहाल, इस बैलगाड़ी की कुछ और विशेषता बताते हैं।
बैलगाड़ी अर्थात् ‘एक ऐसी गाड़ी जिसे बैलों द्वारा खींचा जाता है’। आज भले ही मानव ने बहुत विकास किया है और एक से एक बेहतरीन तथा तेज चाल वाली गाड़ियां बनाई हैं लेकिन बैलगाड़ी के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। बैलगाड़ी विश्व का सबसे पुराना यातायात एवं सामान ढोने का वाहन है। इसकी बनावट भी काफ़ी सरल होती है। स्थानीय कारीगर परम्परागत रूप से इसका निर्माण करते रहे हैं। भारत में तो बैलगाड़ियां प्राचीन समय से ही प्रयोग में आने लगी थीं। भारतीय हिन्दी फ़िल्मों में भी बैलगाड़ी ने अपनी विशिष्ट जगह बनाई और कई यादगार गीतों का हिस्सा बनी। यद्यपि आधुनिक समय में मानव ने शीघ्रता के चलते तेज गति वाली अनेकों गाड़ियों का निर्माण किया, फिर भी विश्व के कई भागों में बैलगाड़ियों का सफर आज भी जारी है।
प्राचीन भारतीय परिवहन की रीढ़
वर्तमान समय में भले ही मानव तेजी से विकास पथ पर अग्रसर है, जो काबिल-ए-तारीफ़ भी है, पर सृष्टि के गूढ़ रहस्यों की खोज में हम कहीं न कहीं अपनी प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। आधुनिकता की इस दौड़ में हम मुंशी प्रेमचन्द के ‘हीरा-मोती’ की जोड़ी के साथ प्राचीन भारतीय परिवहन व्यवस्था की रीढ़ रही बैलगाड़ी को भी खोते जा रहे हैं। ‘होर्रे… होर, आवा राजा, बायें दबा के। ना होर ना। शाबाश… चला झार के। बाह रे बायां… बंगड़ई नाही रे। अरे… अरे देही घुमा के सोटा। जीआ हमार लाल, खट ला खट ला आज से खोराक बढ़ी…।’ आज जो भी मनुष्य पचास से अधिक वर्ष के हैं, वे जानते हैं कि बैलगाड़ी हांकना और घोड़े की लगाम थामने में वही अन्तर था, जो आज कार व बस को चलाने में है। यही नहीं चूंकि उनके अन्दर भी आत्मा थी, अतः इस दौरान उनसे उपरोक्त संवाद भी करने में कामयाब थे। चढ़ाई, ढलान व मोड़ पर महज बागडोर से नहीं, बल्कि संवाद से भी बैलों का पथ प्रदर्शन किया जाता था। इन पर साहित्यकारों व कवियों ने भी खूब कलम चलाया है।
एक दौर था कि गांव के दरवाजों पर बंधे अच्छे नस्ल के गाय-बैलों और उनकी तंदुरूस्ती से ही बड़े कास्तकारों की पहचान होती थी। प्राचीन भारतीय संस्कृति इसका गवाह है कि कृष्ण युग से ही पशुधन सदा से हमारे सामाजिक प्रतीक रहे हैं। बदलते परिवेश में हम इतने अति आधुनिक हो गये कि कृषि में कीटनाशकों व रसायनों का जहर घोल दिया। जिसके फलस्वरूप हमें जैविक रसायनों की तरफ़ फिर से लौटना पड़ रहा है।
हमें खुद व अपनी मिट्टी को स्वस्थ रखने के लिए गोबर चाहिए। इसकी खातिर कृषि वैज्ञानिक किसानों को वर्मी कम्पोस्ट बनाने की कला गांव-गांव घूमकर सिखा रहे हैं। एक दौर था कि जुताई करते बैलों से स्वमेव खेतों को गोबर मिल जाया करता था। खेतों में कार्य करते बैलों को उकसाते हुए किसान कहते थे कि आज ‘खोराक बढ़ी बेटा’, जो नेताओं के कोरे आश्वासन नहीं होते थे, बल्कि घर वापसी के बाद बैलों को चारा-पानी देने के बाद ही किसान भोजन करते थे। बदले में इन प्राकृतिक संसाधनों से पर्यावरण सम्बन्धी कोई समसया भी नहीं होती थी। उस वक्त हम प्रकृति के बेहद क़रीब थे तथा गवईं समाज में हर-जुआठ, हेंगी-पैना जैसे अनेकों शब्दों का प्रयोग आम था। तमाम कहावतें व मुहावरे प्रचलित थीं, जैसे- गांगू क हेंगा भयल बाड़ा, खांगल बैले हो गइला का आदि।
बनावट
वैसे तो बैलगाड़ी देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रूपों में मिलती है। हरियाणा में भी बैलगाड़ी के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। दो बैलों वाली गाड़ियों में लोहे के पहिए होते थे, जिन्हें खींचने के लिए बैलों को बहुत जोर लगाना पड़ता था। लोहे के पहियों को टिकाणी पर फिट करने के लिए शण लगाया जाता था। शण जब सिकुड़ जाता था, तो बैलगाड़ी के पहियों से गलियों में ‘चुर्र-चूं-चुर्र-चूं’ की आवाज़ सुनाई देती थी। रबड़ के टायर लगी बैलगाड़ी बनने के बाद लोगों ने दो के स्थान पर एक बैल का प्रयोग करना शुरू कर दिया। वहीं शण का स्थान भी बैरिंग ने ले लिया। पहियों व टिकाणी के बीच बैरिंग लगने से बैल आसानी से बैलगाड़ी को खींच सकते हैं। बैलगाड़ी को ‘गाड़ा’, ‘बुग्गी’ व ‘रेहड़ू’ आदि नामों से भी जाना जाता है। बैलगाड़ी के निर्माण में टिकाणी या धुरी पर एक चौरस लकड़ी की बॉडी बनाई जाती है। बॉडी में फड़ व फड़ पर जुआ लगाया जाता है, जिसमें बैलों को जोड़ा जाता है। जुए में लकड़ी की सिमल व सिमल में बैलों को जोड़ते हुए जोत लगाई जाती है और आडर पर बैठकर बैलगाड़ी चलाई जाती है।
आजीविका का साधन बैलगाड़ी
वह समय भी बड़ा प्यारा था, जब हीरा-मोती की जोड़ी खेतों के साथ मार्ग की भी शान हुआ करती थी। एक से एक डिज़ाइन वाली बैलगाड़ियां हुआ करती थीं, जिन पर लोग गर्वपूर्वक सवारी करते थे। वहीं मालवाहक बैलगाड़ियां बेहद मजबूत व बड़ी होती थीं। पुराने समय में जबकि परिवहन के इतने साधन उपलब्ध नहीं थे, जितने की आज हैं, तब बैलगाड़ियां किसी मानव के लिए आजीविका का मुख्य स्रोत हुआ करती थीं। यही बैलगाड़ियां प्राचीन भारतीय परिवहन व्यवस्था की रीढ़ मानी जाती थीं। उस दौरान एक तबका इससे जुड़कर अपना व पूरे परिवार का भरण-पोषण करता था। अब हमारी विकास की दौड़ इतनी तेज हो गई है कि हमारे पास इतना मौका नहीं है कि यह देख सकें कि इसकी दिशा व दशा सही भी है या नहीं। निःसन्देह हमने बहुत तेजी से विकास किया है, मगर इसकी दशा व दिशा निर्धारित करने में आज भी हम चूक रहे हैं।
फ़िल्मों में स्थान
सिनेमा जगत में कई फ़िल्मों में बैलगाड़ी को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। बैलगाड़ी को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया है। वासु भट्टाचार्य की फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ की पूरी कहानी बैलगाड़ी के इर्द-गिर्द ही घूमती है। इस फ़िल्म के सभी गाने बैलगाड़ी में ही फ़िल्माए गए थे। पात्र ‘हीरामन’ बैलगाड़ी में बैठा गा रहा है- ‘सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है, न हाथी है न घोड़ा है, वहां पैदल ही जाना है’, ‘दुनिया बनाने वाले, क्या तेरे मन में समाई, काहे को दुनिया बनाई’। इसी तरह इसी फ़िल्म का गाना ‘सजनवा बैरी हो गए हमार, करमवा बैरी हो गए हमार, चिट्ठियां हो तो हर कोई बांचे, भाग न बांचे कोए’ भी बैलगाड़ी पर ही हीरामन गाता प्रतीत होता है। महान फ़िल्मकार विमल राय की फ़िल्म ‘दो बीघा ज़मीन’ व ‘देवदास’ में भी बैलगाड़ी की अपनी अहमियत है। अन्य फ़िल्में ‘आशीर्वाद’ व ‘गीत गाता चल’ में बैलगाड़ी को विशेष स्थान दिया गया है। ‘राष्ट्रीय फ़िल्म विकास निगम’ द्वारा बनाई गई एक फ़िल्म में तो फ़िल्म की शुरुआत ही बैलगाड़ी में बैठे एक बुजुर्ग से की गई है।
लुप्त होने का संकट
यदि आज स्थितियां ऐसी ही रहीं तो क्या बैलगाड़ियां और बैलों की जोड़ियां देखने को मिल पाएंगी? वक्त के थपेड़ों से दो-चार बैलगाड़ी स्वामी बस बुजुर्गों की निशानी मानकर इसे जीवित रखे हुए हैं, अन्यथा आगामी पीढ़ी कब की बैलगाड़ी की थमती रफ्तार को भुला चुका होती। कार की रफ्तार के सामने बैलगाड़ी रफ्तार मन्द पड़ चुकी है। टैक्टर ने बैलों का स्थान ले लिया है। पशु तस्करी व मांस के ग्लोबल बिजनेस ने बैलों को असमय काल के गाल में ढकेल दिया है।
बैलगाड़ी
आम आदमी की सवारी कहे जाने वाली यह गाड़ी अब गांवों से गायब होती जा रही है। ग्रामीण विशेषकर किसान बोझा ढोने, खेती के कार्य के लिए अकसर दो बैलों की गाड़ी का ही प्रयोग करते थे। किसानों व ग्रामीणों के लिए इससे सस्ता वाहन कुछ भी नहीं था। क़रीब तीन दशक पहले तक किसानों के लगभग दूसरे या तीसरे घरों में भी ये गाड़ी देखने को मिलती थी, किसान इनका प्रयोग खेती के कामों, व्यावसायिक जरूरतों को पूरा करने व सफर का आनंद लेने के लिए करते थे। लेकिन मशीनीकरण का युग आने के कारण धीरे-धीरे दो बैलों की गाड़ी अब लगभग गायब हो गई है। यह नहीं है कि गांवों में वर्तमान युग में बैलगाड़ी देखने को नहीं मिलती, बैलगाड़ी तो है, लेकिन बैलगाड़ी में दो की बजाय एक ही बैल देखने को मिलता है। इसे बदलते परिवेश का नतीजा कहें या कुछ ओ र। दो बैलों की गाड़ी कम होने का एक कारण ट्रैक्टर माना जा रहा है, वहीं महंगाई भी इसका एक कारण है। महंगाई बढ़ने से बैलों की कीमत भी आसमान छूने लगी है।
पशु तस्करी
कभी क्विंटलों वजन लादकर शान से चलती बैलों की जोड़ी आज खुद पशु तस्करों के ट्रकों में ठुंसी लाचार आंखों से जान की भीख मांगती नजर आती है। आधुनिक परिवहन के संसाधनों की प्रदूषित गैसों ने जहां लोगों को रोग ग्रस्त कर पर्यावरण का बंटाधार किया है, वहीं बैलों की टूटती परम्परा ने खेतों को रासायनिक खादों की तपती ज्वर में झोंक दिया है, जिसने व्यक्ति के स्वास्थ को दीमक की तरह चाट कर जिन्दा लाश बना दिया है। आज यदि समय रहते हम न संभले तो बैल तथा बैलगाड़ी मात्र अतीत का एक हिस्सा बनकर रह जाएंगे। साथ में भगवान शिव की सवारी भी इतिहास के पन्नों में दफन हो जाएगी। वह वक्त भी आने वाला है कि बैलों को देखने के लिए हमें चिड़ियांघरों की ओर रुख करना होगा। आने वाली नस्लों को बैल व बैलगाड़ी दिखाने के लिए किताबों व मुंशी प्रेमचन्द के ‘हीरा-मोती’ का दर्शन कल्पना के सहारे करना होगा। 
चौथा खंभा न्यूज़ .com / नसीब सैनी/अभिषेक मेहरा

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ITBP सब इंस्पेक्टर के खाते से 2.59 लाख उड़ाए: हिमाचल से लौटते समय बस में चोरी हुआ ATM कार्ड और मोबाइल; एक चूक से पकड़ा गया बदमाश

सब इंस्पेक्टर हिमाचल के रहने वाले है और रेवाड़ी के जाटूसाना स्थित आईटीबीपी के कैंप में तैनात है। रेवाड़ी बस स्टैंड चौकी पुलिस ने पीड़ित की शिकायत पर विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है।

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बस स्टैंड चौकी पुलिस ने एक नामजद शख्स के खिलाफ केस दर्ज कर उसकी तलाश शुरू कर दी है।

हरियाणा के रेवाड़ी में ITBP में तैनात सब इंस्पेक्टर का मोबाइल फोन व ATM कार्ड चोरी कर उनके खाते से 2 लाख 59 हजार रुपए साफ कर दिए। सब इंस्पेक्टर हिमाचल के रहने वाले है और रेवाड़ी के जाटूसाना स्थित आईटीबीपी के कैंप में तैनात है। रेवाड़ी बस स्टैंड चौकी पुलिस ने पीड़ित की शिकायत पर विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है।

मिली जानकारी के अनुसार, हिमाचल के अवैरी बैजनाथ निवासी रमेश चंद ITBP में रेवाड़ी के जाटूसाना स्थित कैंप में सब इंस्पेक्टर के पद पर तैनात है। रमेश चंद ने बताया कि कुछ समय पहले वह छुट्‌टी पर घर गए थे। छुट्टी खत्म होने के बाद वह ड्यूटी ज्वॉइन करने के लिए 28 दिसंबर को रेवाड़ी बस स्टैंड पहुंचे थे। बस स्टैंड से जाटूसाना जाने के लिए बस में सवार होते समय किसी ने भीड़ में उनका एटीएम व मोबाइल चोरी कर लिया। उसके बाद मोबाइल व एटीएम के जरिए ही खाते से 259000 हजार रुपए निकाल लिए।

जांच करने पर आरोपी की पहचान जाटव मोहल्ला रामपुरा निवासी लोकेश पालिया के रूप में हुई। जिसमें 20200 रुपए अपने अकाउंट में ड्रांसफर किए जबकि एक लाख रुपए खाते से निकाले गए। बाकी लेनदेन पेटीएम से किया गया। पूरी जानकारी हासिल करने के बाद रमेश चंद ने इसकी शिकायत बस स्टैंड चौकी पुलिस को दी। पुलिस ने केस दर्ज कर आरोपी लोकेश पालिया की तलाश शुरू कर दी है। गुरुवार को पुलिस ने लोकेश के घर दबिश भी दी, लेकिन वह नहीं मिला। बस स्टैंड चौकी पुलिस के अनुसार जल्द ही आरोपी को पकड़ लिया जाएगा।

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पानीपत में रोका बाल विवाह: लड़का और लड़की दोनों थे नाबालिग, शपथ पत्र लेकर फिलहाल रोकी गई शादी

लड़का व लड़की दोनों के स्कूली दस्तावेजों की जांच की गई तो लड़की की उम्र 16 साल व लड़के की उम्र 19 साल पाई गई। दोनों ही अभी शादी के योग्य नहीं थे। परिवार वालों से शपथ पत्र लेकर फिलहाल इस शादी को रोक दिया गया है।

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मामले की पूछताछ करती बाल विवाह निषेध अधिकारी रजनी गुप्ता।

हरियाणा के पानीपत जिले के एक गांव में बाल विवाह निषेध अधिकारी रजनी गुप्ता ने बाल विवाह रुकवाया है। अधिकारी ने सूचना के आधार पर इस कार्रवाई को किया। लड़का व लड़की दोनों के स्कूली दस्तावेजों की जांच की गई। जिसमें लड़की की उम्र 16 साल व लड़के की उम्र 19 साल पाई गई। दोनों ही अभी शादी के योग्य नहीं थे। परिवार वालों से शपथ पत्र लेकर फिलहाल इस शादी को रोक दिया गया है। दोनों पक्षों से शपथ पत्र लेकर फिलहाल शादी पर रोक लगा दी है। वहीं 4 जनवरी को कोर्ट खुलने के बाद मामला कोट के संज्ञान में लाकर आगामी कार्रवाई की जाएगी।

बाल विवाह निषेध अधिकारी रजनी गुप्ता के अनुसार

जानकारी देते हुए बाल विवाह निषेध अधिकारी रजनी गुप्ता ने बताया कि उन्हें सूचना प्राप्त हुई की गांव नवादा पार में एक नाबालिग लड़की की शादी होनी है। सूचना मिलने पर वह टीम के साथ मौके पर पहुंचे और वहां जाकर लड़की पक्ष से मुलाकात की। मुलाकात के दौरान लड़की के सभी दस्तावेज चेक किए गए। लड़की के स्कूल के दस्तावेजों में उसकी जन्मतिथि मार्च 2005 की मिली। यानी दस्तावेजों के आधार पर लड़की अभी महज 16 साल की थी। इसके बाद लड़के पक्ष को फोन पर बात कर अपने कार्यालय बुलाया। जहां लड़का पक्ष मौजूद हुआ और लड़के के दस्तावेजों को चेक किया गया, जिसमें लड़का भी नाबालिग पाया गया। लड़के की उम्र दस्तावेजों के आधार पर 19 साल थी।

इन कारणों से हो रही थी बाल विवाह
लड़की के पिता ने बताया कि वह पेशे से श्रमिक हैं। यह अपनी बेटी की शादी गरीबी और अज्ञानता के चलते कर रहे थे। साथ ही वह खुद हार्ट पेशेंट है, उनकी तमन्ना थी कि उनके जीते जी उनकी बेटी की शादी हो जाए। वही लड़के पक्ष से लड़के का कहना है कि उसकी चार बड़ी बहने हैं, जो कि चारों विवाहित हैं। तीन भाई व एक छोटी बहन है। अब घर में कोई रोटी बनाने वाला नहीं था, क्योंकि मां की तबीयत सही नहीं रहती है। इसी के चलते वह शादी कर रहा था।

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बालिग हूं, मेरी मर्जी जहां जाऊं: थाने में युवक संग जाने को अड़ी 19 वर्षीय छात्रा, दो दिन पहले गई थी साथ

युवती ने पुलिस से साफ कह दिया कि वह युवक के साथ ही जाएगी। पुलिस और परिजनों के सामझाने पर वह नहीं मानी। छात्रा ने परिजनों की सब दलीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मैं बालिग हूं, मेरी मर्जी जहां जाऊं।

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मामले में थाना लाखन माजरा पुलिस कर रही जांच

हरियाणा के रोहतक के जिले में कॉलेज से दो दिन पहले एक युवक संग गई युवती को पुलिस ने बरामद कर लिया। हालांकि युवती ने पुलिस से साफ कह दिया कि वह युवक के साथ ही जाएगी। पुलिस और परिजनों के सामझाने पर वह नहीं मानी। छात्रा ने परिजनों की सब दलीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मैं बालिग हूं, मेरी मर्जी जहां जाऊं।

कॉलेज गई थी प्रवेश पत्र लेने
लाखन माजरा थाना क्षेत्र के एक गांव से छात्रा मंगलवार सुबह कॉलेज के लिए यह कहकर निकली थी कि आगामी परीक्षा के लिए प्रवेश पत्र लेने जा रही हूं। उसके वापस न लौटने पर परिजनों ने काफी खोज खबर की।रातभर छात्रा की खोज-खबर करने के बाद बुधवार सुबह पुलिस को सूचना दी। छात्रा के पिता ने थाना लाखन माजरा में बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई है। पुलिस ने छात्रा व युवक को वीरवार दोपहर गिरफ्तार कर लिया। दोनों को थाना लाया गया। यहां छात्रा ने युवक संग जाने की रट लगा दी।

कोर्ट में होंगे पेश
मामले में थाना लाखन माजरा एसएचओ अब्दुल्ला खान का कहना है कि छात्रा बालिग है। छात्रा व युवक को कोर्ट में पेश किया जाएगा। वहां उनके बयानों के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी। युवक व छात्रा को कोर्ट ले जाने की तैयारी की जा रही है।

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