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संघर्ष और प्यार की ललक पैदा करते हैं दो पर्व

सूत की एक डोरी से बांधने की परंपरा के इस पर्व के बदलाव के पीछे कई कारण हैं। राखी का मार्केट मौजूदा समय में करोड़ों में पहुंच चुका है।मौजूदा समय में राखियां फैशन व स्टेट्स का सिंबल बन रही हैं और बहन-भाई दोनों ही लेटेस्ट व डिजाइनर राखियां पसंद कर रहे हैं

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रमेश ठाकुर

संयोग की बात है, हिंदुस्तान में दो पर्व एक साथ मनाए जा रहे हैं। दोनों पर्वों के अपने-अपने महत्व हैं। अव्वल, रक्षाबंधन का पारंपरिक त्योहार भाइयों को अपनी बहनों की रक्षा करने की ललक जगाता है, वहीं स्वतंत्रता दिवस हमें संघर्ष और आजादी का मतलब बताता है। रक्षाबंधन पर्व का स्वरूप विगत कुछ सालों से पूरी तरह बदला है। इस पारंपरिक त्योहार पर अब फैशन व स्टेट्स सिंबल हावी हो गया है।

राखी के वास्तविक अर्थ और उसके मायने को भौतिकवादी युग ने बदल दिया है। आज के दिन बहनें भाइयों को सूत की राखी बांधकर अपने जीवन रक्षा का दायित्व उनपर सौंपती हैं। एक जमाना था जब कुछ ही पैसों में बहनें बाजारों से राखी का धागा खरीदकर भाइयों के हाथों में बांधकर उनसे सुरक्षा और रक्षा का वचन लेती थीं। पर, मौजूदा समय में रक्षाबंधन पूरी तरह से बाजार का हिस्सा व स्टेट्स सिंबल बन गया है। कह सकते हैं कि रक्षाबंधन पर्व पर फैशन और भौतिकतावाद पूरी तरह हावी हो गया है। यह त्योहार अब प्रत्यक्ष रूप में बाजार से जुड़ा मुनाफे का सौदा हो गया। बड़ी कंपनियां करोड़ों रूपयों में राखी बनाने का आयात-निर्यात करती हैं। यही कारण है कि रक्षाबंधन भी आज भावनाओं का कम और दिखावे का त्योहार ज्यादा बन गया है। नब्बे के दशक के बाद यह त्योहार पूरी तरह बदल गया है। सूत की एक डोरी से बांधने की परंपरा के इस पर्व के बदलाव के पीछे कई कारण हैं। राखी का मार्केट मौजूदा समय में करोड़ों में पहुंच चुका है।

मौजूदा समय में राखियां फैशन व स्टेट्स का सिंबल बन रही हैं और बहन-भाई दोनों ही लेटेस्ट व डिजाइनर राखियां पसंद कर रहे हैं। आज राखी के विभिन्न कमर्शियल ब्रांड बाजार में उपलब्ध हैं। अब बहने, भाई की कलाई पर एक धागा बांधकर ही अपनी रक्षा का वचन नहीं लेती, वरन उसे महंगी राखी बांधकर कीमती तोहफे की उम्मीद करती हैं। इन हालातों को देखकर लगता है कि रक्षाबंधन पर्व पर फैशन व भौतिकतावाद हावी हो रहा है। बड़ी-बड़ी कंपनियों से लेकर गली-गली में बनने वाली व इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, ज्वेलरी, इलेक्ट्रॉनिक नोटबुक से लेकर लैपटॉप, मोबाइल या ऐसे ही दूसरे तोहफों की एडवांस डिमांड रख रही हैं। हालांकि गरीब व निम्न मध्य वर्ग में आज भी सस्ती फाइबर की राखी उसी प्रेमभाव से बांधी जाती हैं।भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षाबंधन भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस पर्व को कभी सलूनों का त्योहार कहा जाता था। इस दिन केवल बहनें ही भाइयों को राखी बांधें, ऐसा आवश्यक नहीं है। त्योहार का वास्तविक आनंद पाने के लिए धर्म-परायण होना जरूरी है। इस पर्व में दूसरों की रक्षा के धर्म-भाव को विशेष महत्व दिया गया है।

उत्तर भारत में यह पर्व कुछ अलग ही महत्व रखता है। भाई-बहन के पावन प्रेम का प्रतीक यह पर्व सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसके साथ अनेक मिथक व कथाएं इस त्योहार से जुड़ी हैं। शनि के इंद्र को रक्षासूत्र से बंधने से लेकर कर्मावती व हुमायूं तथा द्रौपदी के कृष्ण की उंगुली पर पट्टी बांधने की अनेकानेक मान्यताएं रक्षाबंधन से जुड़ी हैं। वहीं, राजा बलि का नाम लेकर तो आज भी हरेक धार्मिक कृत्य में पंडित यज्ञमान को डोरी बांधने हैं। इन सभी का एक ही आशय है अपने प्रिय की रक्षा की भावना व उसके लिए शुभकामनाएं देना।बदलाव की बात करें तो एक वक्त था, जब बाजार में सिर्फ और सिर्फ सूत या रेशम से बनीं राखियां ही मिला करती थी। गरीब व मध्यम वर्ग के लोग कच्चे सूत की डोरी बांध या बंधवाकर ही रक्षाबंधन का त्योहार बड़े चाव के साथ मना लेते थे। वहीं अमीर लोग रेशम की या जरी की राखियों से राखी का त्योहार मनाते थे। महलों में राजा-महाराजा चांदी से बनी राखियां बंधवाना पसंद करते थे। लेकिन अब राखी सूत की डोर कमजोर पड़ गई है, उसकी जगह और किसी ने ले ली है। कह सकते हैं कि समय के साथ पैसे के बढ़ते प्रभाव से रक्षाबंधन का त्योहार पूरी तरह से बदल गया है।

पर्व के बदलने का कारण एक यह भी है कि बाजारों में आधुनिक राखियों का जलबा है, म्यूजिकल राखियां बच्चों व बड़ों दोनों को लुभा रही हैं। वहीं लाइट बदलने वाली राखियां भी अच्छे भाव पा रही हैं। अमीर लोग अपने बच्चों को राखियों के रूप में घड़ियां व सोने-चांदी की चेन, ब्रेसलेट्स, फ्रैंडशिपबैंड्स आदि दिलवाना पसंद करते हैं। जो लोग सूत की बनीं राखियों से काम चला लेते थे, उनका भी अब मोहभंग हो गया है। वह भी आधुनिक राखियों की ओर खुद ही खिच जाते हैं।आखिर भाई-बहन का रिश्ता दिखावे का नहीं मूलतः भावनाओं का ही तो है। रक्षाबंधन सच्चे व पवित्र प्यार का प्रतीक है पर अब पैसा प्यार पर हावी हो गया है। इस प्रवृत्ति का असर रक्षाबंधन पर भी साफ दिखाई दे रहा है। बहनें भाई को मिठाई की बजाय पिज्जा, बर्गर या फिर मेवे का पैकेट थमा रही हैं, तो भाई भी महंगे से मंहगे तोहफे भेंट कर रहे हैं।

आज के जमाने में अच्छी-सी एक राखी की कीमत बाजार में एक हजार से लेकर एक लाख रूपये तक मौजूद हैं। जब बहन की राखी की कीमत इतनी होगी तो स्वाभाविक रूप से भाई को भी वैसा या उससे भी महंगा उपहार देना ही पड़ेगा। इसी होड़ के चलते रक्षाबंधन का त्योहार पूरी तरह से दिखावे का हो गया है। एक समय था जब बहनें भाई की कलाई पर सिर्फ एक कच्चे धागे की डोर बांध देती थी और भाई उसकी जिंदगी की रक्षा करने की कसम खाते थे। लेकिन बदलते समय के साथ इस पर्व में बहुत कुछ बदलाव आ चुका है। रक्षाबंधन पर बड़ी-बड़ी कंपनियां करोड़ों का दांव लगाकर इस दिन व्यापार करती हैं।

बाजार हर त्यौहार को बदलने का माद्दा रखता है, राखी को भी उसने बदल दिया। राखी के साथ मिठाई की जगह चॉकलेट भेजा जाना, बहनों को साड़ी या पैसे की जगह स्मार्टफोन या टैबलेट दिया जाना भी बदलते वक़्त की ओर इशारा करता है। रक्षाबंधन पर पिछले दो-तीन सालों से चाईना का बाजार काफी फीका पड़ा है। सोशल मीडिया पर चाईना की राखियों का बहिष्कार हो रहा है। इसका सबसे ज्यादा नुकसान उन व्यापारियों को हो रहा है जो राखी पर चाईना से करोड़ों का माल मंगाते थे। दो सालों से वहां से आनी वाली राखियों की खेप लगातार घटी हैं। लोग भारत में बनने वाली राखियां ही खरीद रहे हैं। दरअसल त्योहार दिखावे की भेट नहीं चढ़ने चाहिए। भारतीय त्योहारों पर भौतिकता पूरी तरह से हावी हो चुकी है। इससे बचने की जरूरत है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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जय श्रीराम पर ममता का स्पष्टीकरण बंगालवासियों की जीत : कैलाश विजवर्गीय

जब पूरे देश में इसकी आलोचना हुई तो शनिवार को फेसबुक पर एक पोस्ट लिखकर ममता बनर्जी ने सफाई दी ………………

कोलकाता,(नसीब सैनी)।

जय श्रीराम के नारे को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा दी गई सफाई पर भाजपा ने पलटवार किया है। पार्टी के महासचिव और प्रदेश इकाई के प्रभारी कैलाश विजवर्गीय ने एक ट्वीट के जरिए ममता बनर्जी पर हमला बोला है। उन्होंने कहा है कि जय श्रीराम को लेकर ममता बनर्जी की सफाई बंगालवासियों की जीत की तरह है। इसका मतलब है कि मुख्यमंत्री को ग्लानि है। इसके साथ ही उन्होंने ममता पर झूठ बोलने का भी आरोप लगाया।

विजयवर्गीय ने ट्वीट किया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कह रही हैं कि उन्हें ‘जय श्री राम’ से कोई आपत्ति नहीं है, तो फिर वह कौन थी जो आपत्ति कर रही थी, भूत-प्रेत या कोई आत्मा?? सच तो यह है कि बंगाल की जनता ने ममता बैनर्जी को झुकने पर मजबूर कर दिया है, यह बंगाल की जनता की जीत है।।।जय श्रीराम।।”  उल्लेखनीय है कि गत गुरुवार को अपने काफिले के सामने जय श्रीराम का नारा लगाने वाले लोगों को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चमड़ी उतारने की चेतावनी दी थी। इसके साथ ही उन्होंने नारेबाजी कर रहे लोगों को गालियां भी दी थी।

जब पूरे देश में इसकी आलोचना हुई तो शनिवार को फेसबुक पर एक पोस्ट लिखकर ममता बनर्जी ने सफाई दी है। उन्होंने कहा है कि उन्हें जय श्रीराम के नारे से कोई समस्या नहीं है। भाजपा इसका राजनीतिक इस्तेमाल करती है और इसके खिलाफ वह लड़ाई लड़ेंगी।

नसीब सैनी

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मणिपुर में हवाई सेवा की शुरुआत

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इंफाल। मणिपुर के आकाश में अब हेलीकॉप्टर उड़ते देखे जा सकेंगे। बुधवार से मणिपुर में हेलीकॉप्टर सेवा के औपचारिक रूप से शुरुआत हुई। पहली बार बुधवार को पवन हंस नामक कंपनी द्वारा हेलीकॉप्टर सेवा शुरू की गई है।

पहले दिन बुधवार को यह हेलीकॉप्टर इंफाल से जिले जिरीबाम तक उड़ाया जा रहा है, जिसमें सात यात्री सवार हुए हैं। इस हेलीकॉप्टर सेवा के शुरू होने से मणिपुर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने में लोगों को आसानी होगी। दुर्गम पहाड़ियों में रास्ते नहीं होने की वजह से पूरे राज्य में लोगों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

उल्लेखनीय है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार पूरे पूर्वोत्तर राज्य में आवागमन की सुविधा को बढ़ाने के लिए विशेष स्तर पर कार्य कर रही है। इसी कड़ी में मणिपुर में बुधवार से शुरू हुई हेलीकॉप्टर सेवा को देखा जा सकता है। इस सेवा के शुरू होने को लेकर राज्य की जनता के बीच व्यापक हर्ष का माहौल है।

नसीब सैनी/ अभिषेक मैहरा
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GST revised rates: Now, pay less for eating out and ordering food

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Eating out in hotels and restaurants will become cheaper from today (15 November) with the Goods and Service Tax Council having slashed rates to five percent from 12 and 18 percent earlier. Be it eating in restaurants or ordering takeaways, the tax will be the same, ie, 5 percent. However, there is no formal notification from the government as yet.

A uniform 5 percent tax was prescribed by the council for all restaurants, both air-conditioned and non-AC. Union Finance Minister Arun Jaitley said that the Input Tax Credit (ITC) benefit given to restaurants was meant to be passed on to the customers.

Currently, 12 percent GST on food bill is levied in non-AC restaurants and 18 percent in air-conditioned ones. All these got input tax credit, a facility to set off tax paid on inputs with final tax. The council said the restaurants, however, did not pass on the input tax credit (ITC) to customers and so the ITC facility is being withdrawn and a uniform 5 percent tax is levied on all restaurants without the distinction of AC or non-AC.

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