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इमरान खान की बंदूक और खूनखराबे की भाषा बर्दाश्त नहीं की जा सकतीःसंयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधि विदिशा मैत्रा

—भारतीय प्रतिनिधि ने कहा कि इमरान खान की परमाणु तबाही की धमकी राजनेता की भाषा नहीं बल्कि असंतुलित मानसिकता वाले व्यक्ति की भाषा है

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न्यूयॉर्क,(नसीब सैनी)।

संयुक्त राष्ट्र में भारत की राजनयिक विदिशा मैत्रा ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के इस विश्व मंच पर दिए गए भाषण का मुंहतोड़ उत्तर देते हुए कहा कि इमरान घृणा से भरी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं जो 21 वीं सदी नहीं बल्कि मध्ययुग की मानसिकता को दर्शाता है। संयुक्त राष्ट्र में भारतीय मिशन में प्रथम सचिव विदिशा मैत्रा ने उत्तर देने के अधिकार का प्रयोग करते हुए कहा कि शुक्रवार को इमरान खान का घृणा से भरा भाषण विश्व संस्था का दुरुपयोग है । कूटनीति में एक-एक शब्द का अर्थ होता है। इमरान की भाषा इससे एकदम परे रही।

उन्होंने कहा कि  इमरान ने नरसंहार, खूनखराबा, नस्ली दंभ, हथियार उठाने और मरते दम तक लड़ने जैसे शब्दों का  प्रयोग किया जो कबायली कस्बे दर्रा आदम खेल में प्रचलित  बंदूक की भाषा है। ऐसा इस विश्व संस्था  में शायद ही पहले कभी  हुआ हो। भारतीय राजनयिक ने कहा कि एक व्यक्ति जो कभी सज्जनों  का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट से जुड़ा रहा हो वह भोंडी भाषा का इस्तेमाल कर रहा है। 

भारतीय प्रतिनिधि ने कहा कि इमरान खान की परमाणु तबाही की धमकी राजनेता की भाषा नहीं बल्कि असंतुलित मानसिकता वाले व्यक्ति की भाषा है। पाकिस्तान में आतंकवाद का पूरा उद्योग फल फूल रहा है और इस पर उसका एकाधिकार जैसा है। इमरान खान पूरी निर्लज्जता से इसकी वकालत कर रहे हैं। 

मैत्रा  ने कहा कि इमरान खान की पूरी भाषा विभाजन पैदा करने वाली है। वह अमीर बनाम गरीब, उत्तर बनाम दक्षिण, विकसित बनाम विकासशील और मुस्लिम बनाम अन्य धर्मावलंबी की विभाजनकारी भाषा का इस्तेमाल विश्व संस्था में कर रहे हैं। यह घृणा फैलाने वाला भाषण (हेट स्पीच) है। 

मैत्रा ने कश्मीरियों की हिमायत में बोलने के पाकिस्तान के दावे को खारिज करते हुए कहा कि भारतीय नागरिकों को किसी वकील की जरूरत नहीं है। खास ऐसे लोग उनकी ओर से नहीं बोल सकते जो आतंकवाद का उद्योग चला रहे हैं और घृणा की विचारधारा में विश्वास रखते हैं। 

उन्होंने कहा कि अब जब कि इमरान खान ने उग्रवादी संगठनों की उनके देश में गैरमौजूदगी की जांच के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षक भेजने की पेशकश की है, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को यह दवाब बनाना चाहिए कि वह अपनी बात पर कायम रहें। 

भारतीय प्रतिनिधि ने पाकिस्तान की पेशकश के संदर्भ में  उसके नेताओं से अनेक सवाल पूछे। उन्होंने पूछा,  क्या यह सही नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित 130 आतंकवादी और 25 आतंकवादी संगठन पाकिस्तान में पनाह लिए हुए हैं। क्या पाकिस्तान यह स्वीकार करेगा कि वह दुनिया में एकलौता ऐसा देश है जो आतंकवादी संगठनों अल कायदा और इस्लामिक स्टेट से जुड़े आतंकवादी  को पेंशन देता है। क्या पाकिस्तान इस बात पर सफाई देगा  कि न्यूयॉर्क स्थित पाकिस्तान के हबीब बैंक पर इसलिए ताला  पड़ गया था कि वह आतंकवादियों को धन मुहैया करता था और  उस पर भारी  जुर्माना हुआ था। क्या पाकिस्तान इस बात से इंकार कर सकता है कि आतंकवादियों को धन मुहैया कराये जाने से रोकने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ने 27 में से 20 मानकों में पाकिस्तान को उल्लंघन करने वाला देश माना है। क्या इमरान खान इस बात से इंकार करेंगे कि वह ओसामा बिन लादेन की खुलकर हिमायत करते रहे हैं। 

भारतीय प्रधिनिधि मैत्रा ने कहा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने आतंकवाद और घृणा से भरे भाषण को मुख्यधारा बना दिया है और वह मानवाधिकारों का झूठा कार्ड खेल रहे हैं। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की दुर्दशा का ब्योरा देते हुए मैत्रा  ने कहा कि विभाजन  के समय पाकिस्तान में अल्पसंख्यों की आबादी 23 प्रतिशत थी जो अब घट कर तीन प्रतिशत हो गई है। ईसाइयों, सिखों, अहमदिया लोगों, शियाओं, पश्तूनों, सिंधियों और बलूचियों के खिलाफ ईशनिंदा कानून  के तहत जुल्म किया जा रहा है तथा योजनाबद्ध उत्पीड़न और जबरन धर्म परिवर्तन का सिलसिला जारी है।

विदिशा मैत्रा ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का पूरा नाम  ‘इमरान खान नियाजी’ लेते हुए उन्हें बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में पाकिस्तान के  जुल्मी सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल एए खान नियाजी के कारनामों की याद दिलाई।  उन्होंने कहा कि संगठित नरसंहार किसी जीवंत लोकतंत्र में नहीं होते। अपनी याद्दाश्त ताजा करिये और वर्ष 1971 में पूर्व पाकिस्तान में जनरल नियाजी द्वारा किये गए नृशंस नरसंहार को मत भूलिए। 

भारतीय प्रतिनिधि ने इस संदर्भ में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए गए संबोधन की चर्चा की। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के संबंध में पाकिस्तान की जहरीली प्रतिक्रिया  को खारिज करते हुए मैत्रा  ने कहा कि यह एक कालबाह्य और अस्थाई प्रावधान  था जो राज्य के विकास और शेष भारत के साथ उसके एकीकरण में बाधक था। इस अनुच्छेद को हटाए जाने का विरोध इसलिए किया जा रहा है क्योंकि संघर्ष पर फलने-फूलने वाले लोग शांति की किरण को कभी  बर्दाश्त नहीं करते। 

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद फैलाने और घृणा का वातावरण पैदा  करने का मंसूबा बना रहा है जबकि भारत वहां विकास की गंगा बहाना चाहता है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को भारत की जीवंत और समृद्ध लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा बनाया जा रहा है।  यह लोकतंत्र विविधता, सहिष्णुता और बहुलवाद की सदियों पुरानी विरासत पर आधारित है। 

नसीब सैनी

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