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हिन्दू हाथ में इस्लाम की तलवार…..

सांप्रदायिक दंगों पर ऐसा कथन ‘सच छिपाने, झूठ फैलाने’ का ही उदाहरण है। भारत में दंगों का सौ साल से अनवरत इतिहास है। इस पर कौन सा शोध हुआ? न्यायिक आयोगों की रिपोर्टें, आँकड़े क्या कहते हैं? गंभीरता से इन प्रश्नों का उत्तर ढूँढने पर उलटा नजारा दिखेगा

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बादशाह अकबर के समय मुहावरा शुरू हुआ: ‘हिन्दू हाथों में इस्लाम की तलवार’। तब जब अकबर ने राजपूतों से समझौता कर अपने साम्राज्य के बड़े पदों पर रखना शुरू किया। जिन राजपूतों ने चाहे-अनचाहे पद लिए, उन्हें अकबर की ओर से हिन्दू राजाओं के विरुद्ध भी लड़ने जाना ही होता था। सो, जिस इस्लामी साम्राज्यवाद के विरुद्ध हिन्दू पिछली आठ सदियों से लड़ते रहे थे, उस में पहली बार विडंबना तब जुड़ी जब इस्लाम की ओर से लड़ने का काम कुछ हिन्दुओं ने भी उठा लिया।
वह परंपरा अभी तक चल रही है, बल्कि मजबूत भी हुई है। आम गाँधी-नेहरूवादी, सेक्यूलर, वामपंथी हिन्दू वही करते हैं। इतनी सफलता से कि आज इस मुहावरे का प्रयोग भी वर्जित-सा है! मीडिया व बौद्धिक जगत तीन चौथाई हिन्दुओं से भरा होकर भी हिन्दू धर्म-समाज को मनमाने लांछित, अपमानित करता है। किन्तु इस्लामी मतवाद या समाज के विरुद्ध एक शब्द बोलने की अनुमति नहीं देता। इस रूप में, हिन्दू धर्म के प्रति जो बौद्धिक-राजनीतिक रुख पाकिस्तान, बंगलादेश में है, वही भारत में!
ऐसे ही योद्धा विद्वान लेखक तथा कांग्रेस नेता शशि थरूर हैं। भाजपा के 2019 चुनाव जीतने की स्थिति में उन्होंने यहाँ ‘हिन्दू पाकिस्तान’ बनने का डर जताया। फिर कहा कि भारत में चार सालों में सांप्रदायिक हिंसा बढ़ी, कि यहाँ आज ‘‘एक मुसलमान की अपेक्षा एक गाय अधिक सुरक्षित है।’’
थरूर ने वर्ष 2016 में 869 सांप्रदायिक दंगे होने का उल्लेख किया। पर मृतकों में मात्र तीन नाम लिए: जुनैद, अब्बास, अखलाक। जो कुछ पत्रकारों, बुद्धिजीवियों की चुनी हुई कृपा से देश-विदेश में सैकड़ों बार दुहराए जा चुके हैं। यानी दंगों में हिन्दू नहीं मरे। न इसी दौरान यहाँ किसी मुस्लिम ने किसी हिन्दू की हत्या की!
सांप्रदायिक दंगों पर ऐसा कथन ‘सच छिपाने, झूठ फैलाने’ का ही उदाहरण है। भारत में दंगों का सौ साल से अनवरत इतिहास है। इस पर कौन सा शोध हुआ? न्यायिक आयोगों की रिपोर्टें, आँकड़े क्या कहते हैं? गंभीरता से इन प्रश्नों का उत्तर ढूँढने पर उलटा नजारा दिखेगा।
दंगे किस ने शुरू किए, तथा कितने हिन्दू व कितने मुस्लिम मरे – इन दो बातों को छोड़ कर सारा प्रचार होता है। एक बार कांग्रेस शासन में ही, संसद में गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 1968 से 1970 के बीच हुए 24 दंगों में 23 दंगे मुस्लिमों द्वारा शुरू किए गए। वह कोई अपवाद काल नहीं था। आज भारत में कोई जिला भी नहीं जहाँ से मुसलमानों को मार भगाया गया। जबकि पूरे कश्मीर प्रदेश के अलावा, असम और केरल में भी कई जिले हिन्दुओं से लगभग खाली हो चुके। अब जम्मू, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार में भी कैराना जैसे क्षेत्र बन और बढ़ रहे हैं।
इसलिए, दंगे इस्लामी राजनीति की प्रमुख तकनीक हैं। स्वयं जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि मुस्लिम लीग का मुख्य काम सड़कों पर हिन्दू-विरोधी दंगे करना है। स्वतंत्र भारत में भी यह नहीं बदला। हाल का सब से बड़ा कांड भी इस का प्रमाण है। पहले मुस्लिमों ने गोधरा में 59 हिन्दू तीर्थयात्रियों को जिन्दा जला दिया! तब गुजरात दंगा हुआ। ऐसे तथ्य छिपाकर थरूर इस्लामी आक्रामकता को ही बढ़ाते हैं।
कई दलों ने यहाँ राजनीतिक उद्देश्यों से हिन्दू-विरोधी प्रचार किया है। मुस्लिम ‘सुरक्षा’ के नाम पर उन्हें विशेषाधिकार, विशेष आयोग, संस्थान, अनुदान, आदि दे-देकर उन के वोट लिए हैं। सात वर्ष पहले कांग्रेस सरकार द्वारा ‘सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा निरोध विधेयक’ (2011) उसी की भयंकर परिणति थी। उस में मान लिया गया था कि हर सांप्रदायिक हिंसा के दोषी सदैव हिन्दू और पीड़ित मुस्लिम होंगे! उसी आधार पर ऐसी निरोधक और दंड-व्यवस्था प्रस्तावित हुई थी कि व्यवहारतः यहाँ तानाशाही मुगल-शासन बन जाता।
यहाँ हिन्दू-मुसलमानों के संबंध में उत्पीड़ित-उत्पीड़क का पूरा मामला ऐसा ऑर्वेलियन है कि इस के पाखंड और अन्याय को सामान्य भाषा में रखना कठिन है! जबकि यह कोई दूर देश या सदियों पुरानी बातें नहीं। सामने होने वाली दैनं-दिन घटनाएं झुठलायी, विकृत की जाती हैं।
जैसे, चार साल पहले सहारनपुर में कांग्रेस के लोक सभा प्रत्याशी इमरान मसूद ने खुली सभा में कहा कि वह नरेंद्र मोदी को टुकड़े-टुकड़े कर डालेगा। उपस्थित भीड़ ने ताली बजाई। उस से पहले अकबरुद्दीन ओवैसी ने कहीं और बड़ी सभा में घंटे भर उस से भी अधिक हिंसक भाषण अनवरत तालियों के बीच दिया था। यह सब पीड़ित का नहीं, बल्कि हमलावर का अंदाज है। जिस में हिन्दुओं को भेड़-बकरी मानकर चला जाता है।
इसीलिए, किसी घटना को अलग, अधूरा परोस कर थरूर जैसे लेखक और पार्टियाँ भारत और हिन्दुओं की भारी हानि करते रहे हैं। यहाँ हिन्दू मरते, अपमानित, विस्थापित होते, इंच-इंच अपनी भूमि मुस्लिमों के हाथों खोते हुए भी उलटे आक्रामक शैतान जैसे चित्रित किए जाते हैं।
यह संयोग नहीं, कि सांप्रदायिक दंगे गंभीरतम विषय होते हुए भी यहाँ इस पर शोध, तथ्यवार विवरण, आदि नहीं मिलते! इस के पीछे सचाई छिपाने की सुविचारित मंशा है। खोजने पर एक विदेशी विद्वान डॉ. कोएनराड एल्स्ट की पुस्तक ‘कम्युनल वायोलेंस एंड प्रोपेगंडा’’ (वॉयस ऑफ इंडिया, 2014) मिलती है, जिस में यहाँ सांप्रदायिक दंगों का एक सरसरी हिसाब है। यह पुस्तक भारत में गत छः-सात दशक के दंगों की समीक्षा है। कायदे से ऐसी पुस्तक सेक्यूलर-वामपंथी प्रोफेसरों, पत्रकारों को लिखनी चाहिए थी जो सांप्रदायिकता का रोना रोते रहे हैं! पर उन्होंने जान-बूझ कर नहीं लिखा।
यदि कोएनराड की पुस्तक को डॉ. अंबेदकर की ‘पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया’ (1940) के साथ मिला कर पढ़ें, तो दंगों की असलियत दिखेगी। दंगों के हिसाब में पाकिस्तान और बंगलादेश वाली भारत-भूमि के आँकड़े भी जोड़ने जरूरी हैं। उन दोनों देशों में इधर सैकड़ों मंदिरों के विध्वंस का ‘मूल कारण’ यहाँ बाबरी-मस्जिद गिराने को बताया गया था। अर्थात्, तीन देश हो जाने के बाद भी हिन्दू-मुस्लिम खून में आपसी संबंध है। अतः तमाम हिन्दू हानियाँ जोड़नी होगी। बाबरी-मस्जिद गिरने से पहले, केवल 1989 ई. में, बंगला देश में बेहिसाब मंदिर तोड़े गए थे। उस से भी पहले वहाँ लाखों हिन्दू निरीह कत्ल हुए थे।
सच यह है कि 1947 से 1989 ई. तक भारत में जितने मुसलमान मरे, उतने हिन्दू पूर्वी पाकिस्तान (बंगलादेश) में केवल 1950 ई. के कुछ महीनों में ही मारे जा चुके थे। आगे भी सिर्फ 1970-71 ई. के दो वर्ष में वहाँ कम से कम दस लाख हिन्दुओं का संहार हुआ। विश्व-प्रसिद्ध पत्रकार ओरियाना फलासी ने अपनी पुस्तकों ‘रेज एंड प्राइड’ (पृ. 101-02) तथा ‘फोर्स ऑफ रीजन’ (पृ. 129-30) में ढाका में हिन्दुओं के सामूहिक संहार का एक लोमहर्षक प्रत्यक्षदर्शी विवरण दिया है। पूर्वी पाकिस्तान में हुआ नरसंहार गत आधी सदी में दुनिया का सब से बड़ा था! उस के मुख्य शिकार हिन्दू थे, यह पश्चिमी प्रेस में तो आया, पर भारत में छिपाया गया।
पूरा हिसाब करें, तो केवल 1947 ई. के बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा में अब तक मुसलमानों की तुलना में नौ गुना हिन्दू मारे गए हैं! पर यहाँ इस्लाम की तलवार थामे बौद्धिक ही प्रभावशाली हैं। हिन्दुओं का पक्ष रखने वाले दर-दर भटकते, खाली हाथ लड़ने को मजबूर है। पार्टियों की सत्ता उठा-पटक से इस दुर्दशा में कोई अंतर न आया। यह भी थरूर जैसों के घमंड और आत्मविश्वास का एक कारण है। वे एक वैश्विक साम्राज्यवादी मतवाद के साथ हैं, इसलिए भी बलवान महसूस करते हैं।
ऐसे अनुचित हमलों से हिन्दू धर्म-समाज पर गहरी चोट पहुँचती है। पीड़ित को ही उत्पीड़क बताया जाता है। जो भारतवर्ष और हिन्दू समाज हजार साल से इस्लामी साम्राज्यवाद की मार झेल रहा है, उसे कोई सहयोग, सहानुभूति मिलना तो दूर, उस के अपने बच्चे उसे ही दुष्ट, हत्यारा बताएं, तो उस की दुर्दशा का अनुमान करना चाहिए।

द्वारा- शंकर शरण/डॉ विवेक आर्य/नसीब सैनी

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जय श्रीराम पर ममता का स्पष्टीकरण बंगालवासियों की जीत : कैलाश विजवर्गीय

जब पूरे देश में इसकी आलोचना हुई तो शनिवार को फेसबुक पर एक पोस्ट लिखकर ममता बनर्जी ने सफाई दी ………………

कोलकाता,(नसीब सैनी)।

जय श्रीराम के नारे को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा दी गई सफाई पर भाजपा ने पलटवार किया है। पार्टी के महासचिव और प्रदेश इकाई के प्रभारी कैलाश विजवर्गीय ने एक ट्वीट के जरिए ममता बनर्जी पर हमला बोला है। उन्होंने कहा है कि जय श्रीराम को लेकर ममता बनर्जी की सफाई बंगालवासियों की जीत की तरह है। इसका मतलब है कि मुख्यमंत्री को ग्लानि है। इसके साथ ही उन्होंने ममता पर झूठ बोलने का भी आरोप लगाया।

विजयवर्गीय ने ट्वीट किया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कह रही हैं कि उन्हें ‘जय श्री राम’ से कोई आपत्ति नहीं है, तो फिर वह कौन थी जो आपत्ति कर रही थी, भूत-प्रेत या कोई आत्मा?? सच तो यह है कि बंगाल की जनता ने ममता बैनर्जी को झुकने पर मजबूर कर दिया है, यह बंगाल की जनता की जीत है।।।जय श्रीराम।।”  उल्लेखनीय है कि गत गुरुवार को अपने काफिले के सामने जय श्रीराम का नारा लगाने वाले लोगों को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चमड़ी उतारने की चेतावनी दी थी। इसके साथ ही उन्होंने नारेबाजी कर रहे लोगों को गालियां भी दी थी।

जब पूरे देश में इसकी आलोचना हुई तो शनिवार को फेसबुक पर एक पोस्ट लिखकर ममता बनर्जी ने सफाई दी है। उन्होंने कहा है कि उन्हें जय श्रीराम के नारे से कोई समस्या नहीं है। भाजपा इसका राजनीतिक इस्तेमाल करती है और इसके खिलाफ वह लड़ाई लड़ेंगी।

नसीब सैनी

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मणिपुर में हवाई सेवा की शुरुआत

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इंफाल। मणिपुर के आकाश में अब हेलीकॉप्टर उड़ते देखे जा सकेंगे। बुधवार से मणिपुर में हेलीकॉप्टर सेवा के औपचारिक रूप से शुरुआत हुई। पहली बार बुधवार को पवन हंस नामक कंपनी द्वारा हेलीकॉप्टर सेवा शुरू की गई है।

पहले दिन बुधवार को यह हेलीकॉप्टर इंफाल से जिले जिरीबाम तक उड़ाया जा रहा है, जिसमें सात यात्री सवार हुए हैं। इस हेलीकॉप्टर सेवा के शुरू होने से मणिपुर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने में लोगों को आसानी होगी। दुर्गम पहाड़ियों में रास्ते नहीं होने की वजह से पूरे राज्य में लोगों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

उल्लेखनीय है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार पूरे पूर्वोत्तर राज्य में आवागमन की सुविधा को बढ़ाने के लिए विशेष स्तर पर कार्य कर रही है। इसी कड़ी में मणिपुर में बुधवार से शुरू हुई हेलीकॉप्टर सेवा को देखा जा सकता है। इस सेवा के शुरू होने को लेकर राज्य की जनता के बीच व्यापक हर्ष का माहौल है।

नसीब सैनी/ अभिषेक मैहरा
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GST revised rates: Now, pay less for eating out and ordering food

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Eating out in hotels and restaurants will become cheaper from today (15 November) with the Goods and Service Tax Council having slashed rates to five percent from 12 and 18 percent earlier. Be it eating in restaurants or ordering takeaways, the tax will be the same, ie, 5 percent. However, there is no formal notification from the government as yet.

A uniform 5 percent tax was prescribed by the council for all restaurants, both air-conditioned and non-AC. Union Finance Minister Arun Jaitley said that the Input Tax Credit (ITC) benefit given to restaurants was meant to be passed on to the customers.

Currently, 12 percent GST on food bill is levied in non-AC restaurants and 18 percent in air-conditioned ones. All these got input tax credit, a facility to set off tax paid on inputs with final tax. The council said the restaurants, however, did not pass on the input tax credit (ITC) to customers and so the ITC facility is being withdrawn and a uniform 5 percent tax is levied on all restaurants without the distinction of AC or non-AC.

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